वोटर गुजरात के


चुनावी कविता (हास्य रस)
शीर्षक : वोटर गुजरात के

वैसे तो वो आते भी नहीं थे, भारी तूफान या बरसात में।
चुनाव के बहाने ही सही, कुछ दिन तो गुजारे गुजरात में।

यूँ तो हमें जात-पात-समाज में बाँट के, दावे किए विकास के।
लेकिन गुजरात की जनता ने फरमाया, रहो अपनी औकात में।

मंदिर - मंदिर फिरते रहे, मकसद उनका सिर्फ वोट था।
भगवान भी क्या कर लेते, जब उनके दिल में ही खोट था।

आज नहीं तो कल काटेंगे, जातिवाद का जहर तो बो दिया।
पर धन्य है गुजरात की जनता, उसे जड़ से ही उखाड़ दिया।

हराने आए थे हमें, हमारे गढ़ में, हमारे ही अंदाज में।
पर खुद ही हार गए लगातार, छठवीं बार गुजरात में।

सपने देखे थे कुछ लोगों ने, कोंग्रेस की सुहागरात के।
बारात से दुल्हन ही उठाकर ले गए, 'वोटर गुजरात के'।

#GujaratElections2017
#GujaratVerdict
#BJP4Gujarat
(21/12/2017)

Comments

Popular posts from this blog

2019 અને ભારતનું ભવિષ્ય